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. जैनधर्मामृत मुक्तिको प्राप्त किया है और जिसने प्राणिमात्रको अभयदान दिया है, उसे 'पितामह' कहते हैं ॥४॥
यस्य पण्णवमासानि रनवृष्टिः प्रवार्पिता । ___ शक्रेण भक्तियुक्तेन रत्नगर्भस्ततो हि सः ॥४५॥
जिसके गर्भमें आनेके छह मास पूर्वसे लगाकर जन्म लेने तक लगातार पन्द्रह मास भक्ति-युक्त इन्द्रने रल-वृष्टि की, उसे लोग 'रत्नगर्भ' कहते हैं ॥४५॥
मतिश्रुतावधिज्ञानं सहजं यस्य वोधनम् ।
मोक्षमार्गे स्वयं बुद्धत्तेनासौ बुद्धसंज्ञितः ॥४६ जिसके जन्म होनेके साथ ही मति-श्रुत और अवधिज्ञान उत्पन्न हुए थे और जो मोक्षमार्गके विषयमें स्वयं प्रबुद्ध है, अर्थात् जिसे मोक्षमार्ग पर किसी दूसरेने नहीं चलाया है, किन्तु जो स्वयं ही मुक्तिके मार्ग पर चला है उसे 'बुद्ध' कहते हैं ॥४६॥
केवलज्ञानबोधेन बुद्धवान् स जगत्त्रयम् । ___ अनन्तज्ञानसकोणं तं तु बुद्धं नमाम्यहम् ॥१७॥
जिसने अपने केवलज्ञानरूप बोधके द्वारा तीनों जगत्को जान लिया है और जो अनन्त ज्ञानसे व्याप्त है, उस बुद्धको मैं नमस्कार करता हूँ|४||
सर्वार्थभाषया सम्यक् सर्वकेशप्रघातिनाम् ।
सत्त्वानां बोधको यत्तु बोधिसत्त्वस्ततो हि सः ॥४॥ जो शारीरिक-मानसिक आदि सर्व प्रकारके क्लेशोंमें पड़े हुए प्राणियोंको सर्व-अर्थोकी प्रतिपादन करनेवाली अपनी अनुपम भाषा या दिव्यवाणी के द्वारा बोध-प्रदान करता है, उसे 'बोधिसत्त्व' कहते हैं।॥४८॥ . . .