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चतुर्थ अध्याय
१४६ . प्रकारके भोजन त्यागको उपवास कहते हैं। जब एकाशनके साथ उपवास किया जाता है तब उसे प्रोषधोपचास कहते हैं। .
५ सचित्तत्यागप्रतिमा . मूल-फल-शाक-शाखा-करी-कन्द-प्रसून-बीजानि ।
नामानि योऽत्ति सोऽयं सचित्तविरतो दयामूर्तिः ॥१३३॥ जो दया-मूर्ति श्रावक कच्चे कन्द, मूल, फल, शांक, शाखा, कैर, कन्द, फूल और बीजोंको नहीं खाता है, वह सचित्तत्यागप्रतिमाधारी कहलाता है ॥१३३॥
रात्रि-भोजनत्यागप्रतिमा ... अन्नं पानं खाद्यं लेां नाश्नाति यो विभावर्याम् । । . . स च रात्रिभुक्तिविरतः सत्त्वेष्वनुकम्पमानमनाः ॥१३४॥
जो रात्रिमें अन्न, पान, खाद्य और लेह्य इन चारों प्रकारके आहारको प्राणियों पर अनुकम्पाशील चित्त होकर नहीं खाता है, वह रात्रिभुक्तिविरत श्रावक है ॥१३॥ ...
विशेषार्थ-इस प्रतिमाके पूर्व औषधादिके कादाचित्क कुछ अपवाद रात्रिमें लेनेके थे, किन्तु छठी प्रतिमामें औषधि तो क्या, जल तकका भी त्याग आवश्यक है, इतना ही नहीं, भोजन पान भी दिनके दो घड़ी उदयकाल और अस्तकालमें लेने तकका निषेध है।
. ७ ब्रह्मचर्यप्रतिमा.. ... मलबीजं मलयोनि गलन्मलं पूतगन्धि बीभत्सम् ।
पश्यन्नशमनङ्गाद्विरमति यो ब्रह्मचारी सः ।।१३५।। - जो पुरुष स्त्रीके कामाङ्गको यह मलका बीज है, मलकी योनि है, निरन्तर इससे. मल गलता रहता है, दुर्गन्ध युक्त है, और