Book Title: Jain Dharmamruta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 170
________________ पञ्चम अध्याय १५७ रहित, हित, मित और असंदिग्ध भाषा बोलना भाषासमिति है ॥१०॥ .. ३ एषणासमिति पट्चत्वारिंशद्दोपोना प्रासुकान्नादिकस्य या । - एपणासमितिभुक्तिः स्वाध्यायध्यानसिद्धये ॥११॥ आहार सम्बन्धी छयालीस दोषोंसे रहित, प्रासुक अन्नादिकका स्वाध्याय, और ध्यानकी सिद्धिके लिए ग्रहण करना एषणासमिति है ॥११॥ . ४ आदाननिक्षेपणसमिति ज्ञानोपकरणादीनामादानं स्थापनं च यत् । यत्नेनादाननिक्षेपसमितिः करुणापरा ॥१२॥ .:: ज्ञानके उपकरण शास्त्र-पुस्तकादिकोंका और संयम आदिके उपकरण पीछी कमण्डलु आदिका यत्नपूर्वक उठाना और स्थापन करना सो परम करुणावाली आदाननिक्षेपणसमिति है ॥१२॥ . - ५ उत्सर्गसमिति दूरगूढविशालाविरुद्धशुद्धमहीतले । उत्सर्गसमितिर्विमूत्रादीनां स्याद्विसर्जनम् ॥१३॥ . दूरवर्ती गूढ, विशाल, अविरुद्ध और शुद्ध महीतलपर मल-मूत्र आदिका विसर्जन करना उत्सर्गसमिति है ॥१३॥ . __पञ्चेन्द्रिय-विजयता. चक्षुःश्रोत्रघ्राणजिह्वास्पर्शाक्षगोचरे भिक्षोः ।.... रत्यरतिचित्तवृत्ते रोधः स्यादक्षसंरोधः ॥१४॥...: .... चक्षु, कर्ण, घ्राण,, जिह्वा और स्पर्शन इन्द्रियके इष्ट-अनिष्ट ।

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