Book Title: Jain Dharmamruta
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 167
________________ पञ्चम अध्याय अनगार धर्मका वर्णन युक्ताः पञ्चमहावतैः समितयः पञ्चाक्षरोधाशयाः; पञ्चावश्यकपड्कलुञ्चन वराचेलक्यमस्नानता । भूशय्यास्थितिमुक्तिदन्तकपणं चाय कभक्तं यता वेवं मूलगुणाष्टविंशतिरियं मूलं चरित्रश्रियः ॥१॥ सकल चारित्रके धारक अनगार साधुके पाँच महाव्रत, पाँच समितियां, पंच इन्द्रिय-विजय, छह आवश्यक, केशलुञ्चनता, अचेलकता, अस्नानता, भूशय्या, स्थितिभोजन, अदन्तधावन और एकभुक्ति, ये अट्ठाईस मूलगुण होते हैं, जो कि चारित्रलक्ष्मीकी प्राप्तिके मूल कारण हैं ॥१॥ पाँच महाव्रत अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यमसंगता । महाव्रतानि पञ्चैव निःशेपावद्यवर्जनात् ॥२॥ हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँचों पापोंका निःशेषरूपसे त्याग करने पर अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और असंगता या परिग्रह त्याग रूप पाँच महाव्रत उत्पन्न होते हैं ॥२॥ १ अहिंसा महाव्रत जन्मकायकुलाक्षाद्यैत्विा सत्त्वतति श्रुतेः । त्यागस्त्रिशुद्धया हिंसादेः स्थानादौ स्यादहिंसनम् ॥३॥ जन्म, काय, कुल और इन्द्रिय आदिके द्वारा शास्त्रानुसार

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