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तृतीय अध्याय जिस योगीका समस्त आचरण ज्ञानपूर्वक होता है, उसके किसी भी कालमें कर्म-बंध नहीं होता है ॥२१॥
यत्र बालश्चरत्यस्मिन् पथि तत्रैव पण्डितः ।
बालः स्वमपि बध्नाति मुच्यते तत्वविद् ध्रुवम् ॥२२॥ - जिस मार्ग पर अज्ञानी पुरुष चलता है, उसी मार्ग पर ज्ञानी पुरुष भी चलता है। परन्तु अज्ञानी तो अपने आपको बाँधता है
और तत्त्वज्ञानी निश्चयसे बन्ध-रहित हो जाता है, यह सब ज्ञानका ही माहात्म्य है ॥२२॥ ___ इस प्रकार सम्यग्ज्ञानका वर्णन करनेवाला तीसरा
अध्याय समाप्त हुआ।