Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay Author(s): Mohanlal Mehta Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation BangalorePage 11
________________ (१०) ९५-२४५ ९६ अकलंक हरिभद्र विद्यानन्द शाकटायन और अनन्तवीर्य माणिक्यनन्दी, सिद्धर्षि और अभयदेव प्रभाचन्द्र और वादिराज जिनेश्वर, चन्द्रप्रभ और अनन्तवीर्य वादिदेवसूरि हेमचन्द्र अन्य दार्शनिक यशोविजय तत्त्वविचार जैन धर्म और जैन दर्शन भारतीय विचार-प्रवाह की दो धाराएं ब्राह्मण संस्कृति श्रमण संस्कृति 'श्रमण' शब्द का अर्थ जैन परम्परा का महत्त्व जैन दृष्टि से लोक सत् का स्वरूप द्रव्य और पर्याय भेदाभेदवाद द्रव्य का वर्गीकरण रूपी और अरूपी आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व आत्मा का स्वरूप ज्ञानोपयोग दर्शनोपयोग संसारी आत्मा १०० १०२ १०५ १०६ ११३ ११७ १२२ १२९ १३८ १४३ १४६ १५५ १५६ १५९ १६१ १७८ पुद्गल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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