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हर्षे' धातु से बनता है। मद शब्द का अर्थ यह है कि केवल अपने में ही इतना हर्षित होजाना कि दूसरे को कुछ न समझना । मद का लक्षण ‘पराप्रणतिर्मदः । अर्थात् दूसरे का अविनय करना ही मद है । यह मद, ज्ञान, पूजा ( सत्कार ) कुल, जाति, बल, ऋद्धि, ता र शरीर का किया जा सकता है इसीलिए पाठ प्रकार का कहा गया है।
ज्ञान मद का यह अर्थ है कि अन्य ज्ञानवानों का अपमान करना, पूजा मद का यह अर्थ है कि अन्यान्य सत्कार युक्त प्रतिष्ठित पुरुषो का अपमान करना, कुननद यह है कि अन्य कुलीन व्यक्तियों का अपमान, जाति मद यह है कि अन्य जाति वालों का अपमान करना, ऋद्धि मद यह है कि अन्य ऋद्धिवारियों का अपमान करना, तपोमद यह है कि अन्य तपस्त्रियों का अपमान करना और शरीर मद यह है कि अन्य शरीरधारियों का अपमान करना। भावार्थ-अपने ज्ञान सत्कारादि में हो तो परम हर्षित इतने हाना कि जिससे दूसरों का अपमान होजाय, इसी का नाम मद है।
___एक गुरु और शिष्य है। गुरु शिष्य को पड़ाते समय या अन्य समय भी उच्चासन पर बैठता है तो क्या इससे अपमान माना जायगा ? कदापि नहीं। गुरु का भाव अपमान करने का न होकर शिष्य को विनीत बनाने के लिए है। इसी प्रकार एक आदमी यदि किसी के साथ एक थाली में भोजन नहीं करता तो