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बौद्ध कहते हैं परन्तु बौद्धाचार और बौद्ध वैराग्य वहां कितना है..? अहिंसा कितनी है ? कहते हैं कि वहां मांस भक्षणादिका पर्याप्त प्रचार हैं। मृत पशुओं का मांस खाने में मांसाशन का दोष ही नहीं समझा जाता। ___ भारत में जैन धर्म भी नहीं रहने पाता यदि धर्म को जातीयता का अवलम्बन नहीं मिलता । यह हो सकता हैं कि जातीयता के आश्रय से दूसरे लोग उसे पती न समझ परन्तु जिस जाति का जो धर्म होता हैं उस जाति के लोग तो उसे बपौती समझते ही हैं इस तरह एक मुख्य आश्रय से वह चीज टिकी रहती है और कालांतर मे प्रचारादि बल से पनप भी जाती है। मुख्य आश्रय के बिना कोई चीज टिक भी नहीं सकती। आज जिन जातियों में जैन धर्म है यदि वे उसको छिटका दें या उसकी रक्षा का प्रयत्न न कर शिथिलता धारण करलें तो उसकी रक्षा का प्रयत्न करने धाला कौन है ? महावीर जयन्ती की सार्वजनिक छुट्टी के लिए क्या जैनेतर भी प्रयत्न करते हैं ? संभवतः जैनेतरों में कुछ ऐसे भी होंगे जो महावीर जयंती की छुट्टी का विरोध भी करते होंगे । यदि ये जातियां न होती तो न जैन धर्म की परंपरा चलती
और न भारत में परम कल्याणकारी जैन धर्म का अस्तित्व ही कहीं बौद्ध धर्म की तरह उपलब्ध होता ?
कुछ व्यक्तियों का कहना है कि जाति भेद ५००-७०० वर्ष से चला है, पहले नहीं था। पहले तो 'एकैव मानुषी जातिः' यह