Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 77
________________ .७२ सकता है, साथ में जो उद्दण्डतो आज की शिक्षा प्रणाली से फैलती है, वह रुक सकती है। - F ३ - और भी सरकार के सहयोगी अनेकानेक कार्य उसी प्रकार संपन्न हो सकते है जैसे कि पूर्वकाल में सपन्न हुआ करते थे । ... $9. ४. यह जाति भेद से सांप्रदायिकता और जातीयता की गंध लेना एक प्रकार से बुद्धि का दिवालियापन है । आज के कांग्रेस संघटन में सभी जाति के लोग हैं जो विवाह भी प्रायः अपनी २ जाति में ही करते हैं परन्तु विभिन्न जातीय लोगों के साथ प्रेम में कोई बाधा नहीं है । परस्पर विवाह ही एकता मे कारण हा, बात नहीं है ! परस्पर विवाह तो निकट सम्बन्धियों में भी नहीं होता है परन्तु उसमें पारस्परिक प्रेम देखा जाता है । यवनों में चाचा की लड़की ब्याहने की प्रथा होने पर भी लड़ाई झगड़े देखे जाते हैं । वास्तव में प्रेम और झगड़े में राग द्वेष और स्वार्थ बुद्धि की तरसता ही कारण है 1 अनुलोम- प्रतिलोम विवाह | - : विवाह आठ प्रकार के होते हैं : ब्राह्मो दैवस्तथा चार्ष: प्राजापत्यस्तथाऽऽसुरः । गांध राक्षसश्चैव पैशाचश्चाष्टमो मतः ॥

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