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नमस्कार कर हाथ से ग्रहण की हुई तो पत्नी होती है और यों ही रखी हुई चेटिका (रखेल) होती है। पत्नी भी दो प्रकार की होती है, धर्मपत्नी और भोगपत्नी । सजातीय विवाहिता स्त्री धर्मपत्नी और विजातीय विवाहिता स्त्री भोगपत्नी होती है। धर्मपत्नी ही धर्मकार्यो तथा पूज' प्रतिष्ठादि शुभ कार्यो में सहयोगिनी हो सकती है और उमी से उत्पन्न पुत्र समस्त धर्म कार्यों तथा संपत्ति का अधिकारी हो सकता है चाहे उत्पादक पिता जीवित हो या मृत । कुटुम्ब रक्षा आदि का भार भी उसी धर्मपत्नी मे उत्पन्न पुत्र पर आसकता है क्योकि वही धर्म तथा लोक के अविरुद्ध है।
पितृजनों की साक्षी से विवाहिता विजातीय स्त्री भोगपत्नी कहलाती है। वह केरल भोग मात्र का ही माधन है। चाहे अपनी जाति का हो या विजाति की हो, नदि विगह के बिना ही उस स्त्रो बनाली गई हो तो वह चेटिका (रखेल) कहलातो है।
चेटिका और भोगपत्नो दोनों ही भोग मात्र की साधन से चाहे लोकोक्ति में कुछ विशेषता हो तो भी समान ही है क्योंकि दोनों ही से पारमार्थिक धर्मरक्षण अथवा कुल सचालन नहीं होता । ___ जो धर्म के ज्ञाता सदाचारी पुरुप हैं उनको चाहिये कि झोगपत्नी अथवा चेटिका किसी से भी संबंध न करे क्योंकि द्रव्य शुद्धि और भावशुद्धि दोनों ही से पुण्य साधन होता है । वस्तु