Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 72
________________ ६७. - भावार्थ - किस को न तो अपनो जाति के बाहर विवाह करने की और न अपनी वृत्ति को छोड़कर अन्य वृत्ति को प्रह करने की अनुमति है । उदाहरणार्थ-योद्धा, कृषक नहीं बन सकता और शिल्पी दार्शनिक नहीं बन सकता । अन्यत्र भी लिखते हैं कि अपनी जाति के बाहर किसी के भी विवाह का अनुमोदन नहीं किया जाता अथवा किसी को भी पनी वृत्ति किंवा व्यवसाय का परिवर्तन नहीं करने दिया जाता अथवा कोई एकाधिक वृत्ति को नहीं ले सकता। केवल दार्शनिकों के लिए ही इसका व्यतिक्रम होता है । दार्शनिक धार्मिक हैं इस लिए वे वैशिष्ट्य भोग रहे हैं ।" मेगास्थनीe jarरत के सन्बन्ध में बहुत कुछ लिखा है । राजाओं के सम्बन्ध में लिखा है कि " राजा दिन भर न्यायसभा में रहते हैं। यहां का कार्यक्रम कभी बन्द नहीं रहता। यहां तक कि जब राजा का शरीर मर्दन किया जाता है उस समय भी राजकार्य बंद नही होता। इधर चार सेवक मर्दन का काम करते हैं। और उधर राजा अभियोग सुनते रहते हैं। " 1 मेगास्थनीस मे यह भी कहा है कि " भारत के लोग कई इसलिये यहां दुर्भिक्ष का धार्मिक नियमों का अनुसरण करते हैं, निवारण होता रहता है ।। अन्य देशों के लोग तो युद्ध के समय साधारणतया भूमि और खेतों को उजाड़ देते हैं, जमीन को खेती के योग्य नहीं रहने देते परन्तु यहां जिस भूमि का कर्षण होता है }

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