Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ २४ 1 बन नहीं सकता क्योंकि क्षत्रिय वैश्य और शूद्र में भी जीवत्व होने से ब्राह्मणत्व प्रसङ्ग आ जायगा क्यों कि जीव तो उनके भी है। शरीर को भी ब्राह्मणत्व नहीं माना जा सकता है क्यों कि जिस प्रकार घट में ब्राह्मणत्व नहीं है उसी प्रकार पंचभूतात्मक शरीर में भी नही हो सकता क्यों कि घट और शरीर दोनों ही पंचभूतात्मक है । यदि पंचभूतों को ब्राह्मणव माना जाय तो सबका सामुदायिकता से या पृथक् २ का ? दोनों ही पक्ष युक्ति से सिद्ध नहीं होते। इसी प्रकार जीव और शरीर इन दोनों का भी ब्राह्मणत्व स्वीकार नहीं किया जा सकता क्यों कि उभयदोष का प्रसंग आ जाता है । संस्कार का भी ब्राह्मणत्व स्वीकार योग्य नहीं क्यों कि संस्कार तो शूद्र बालक में भी किया जा सकता है तब फिर संस्कार के कारण उसे भी ब्राह्मण मानना पड़ेगा। एक बात यह भी जानने योग्य है कि संस्कार के पहले ब्राह्मण बालक में ब्राह्मणत्व था या नहीं ? यदि था तो संस्कार करना फिर व्यर्थ है यदि नहीं है तो नया करना भी व्यर्थ हैं क्यों कि क्षत्रिय आदि में भी संम्कार किया जा सकता हैं, संस्कार तो उसका भी हो सकता है । इसी तरह वेदाध्ययन को भो ब्राह्मणत्व का हेतु नहीं माना जा सकता क्यों कि वेदाध्ययन तो शूद्र में भी हो सकता है । किसी गुद्र को चाहे उस नगर का

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95