Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 34
________________ जातियों की उत्पत्ति भी लव और "कुश से ही बतलाई जाती है, लव और कुश नामका कोई आचरण नहीं । अग्रवाल आति अग्रमेन के नाम पर है जिनकी जयन्ती आज भी लोग मनाते हैं। विजयवर्गीय जाति में विजयवर्ग नाम का कोई आचरण नहीं। क्षत्रियों की राजावत, नाथावत आदि जातियों में राजा, नाथा नाम के कोई आचरण नहीं किन्तु व्यक्ति ही हुए हैं। ऐसे ही हजारों दृष्टांत हैं जिनसे स्पष्ट प्रतीत होता है कि जातिय के नाम आचरण के कारण न होकर पूण्यवान पूर्वजों आदि के नाम से है। वर्ण भेद तो आचरण भेद से हो भी सकता है परन्तु उसे भी जन्मजात माने विना काम नहीं चल सकता क्यों कि एक दिन में ही अनेक प्रकार का आचरण मानव करता है तब कौनसा वर्ण हो? इसीलिये पूर्षाचार्यों तथा सर्वज्ञ भगवान् ने पिता पितामहादि पूर्वजों के वर्ण से ही तदुत्पन्न संतति में वर्ण माना है। इसलिए आचरण से जाति भेद की कल ना करके उसे आधुनिक और अव्यवहार्य मानना तर्क और युक्ति के विरुद्ध होने के अतिरिक्त प्रत्यक्ष के भी विरुद्ध है। चमार, लुहार, कुम्हार आदि कुछ लोग ऐसे हैं जिनका नाम काम के आधार पर भी हो सकता है। जैसे चर्म व्यवसाय केआधार पर चमार, लोह के ब्यवसाय पर लुहार आदि । इन लोगों में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो दूसरी जाति के होने पर भी काम के कारण लुहार दर्जी आदि कहलाते हैं । आज बहुत से ब्राह्मण

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