Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 65
________________ कालों में वैष्णव सम्प्रदायी मथुरा के सेठों जोकि खंडेलवाल हैं तथा अन्य दि० जैन खंडेलवालों में पारस्परिक विवाह सम्बन्ध । अजैनों में भी विवाह में सजातीयता ही अनिवार्य देखी जाती है। आर्यसमाजियों तथा सनातनधर्मियों किन्तु सजातीयों में ही विवाह संबंध होता है। यह वैज्ञानिक तत्व है कि जितना रक्त-संबंध निकट होता है उतना ही उसके प्रति आकर्षण होता है। जितना अपने औरस पुत्र पुत्री के प्रति माता पिता का स्नेह और आकर्षण होता है उनना अन्य कौटुम्बिक के पुत्र पुत्री के प्रति नहीं एवं जितना उनके प्रति आकर्षा होता है ना अडोमी पड़ोसी के प्रति नहीं होता यों ज्यों ज्यों उत्तरोत्तर अधिक दूरता चली जाती है त्यों त्यां ही अधिक उपेक्षा होजाती है। एक लड़का जब रक्तहीन होक मरणासन्न होजाता है तो डाक्टर उसके शरीर में रक्त संचार कर उसे जीवित रखना चाहता है । डाक्टर यह रक्त चाहे जिस व्यक्ति का न लेकर उसके अनिनिकट संबधी पिता या भाई का ही निकालता है और उस मरणासन्न बालक के शरीर में प्रविष्ट करता है । वास्तव में पुत्र के रक्त में पिता के रक्त को ही आकृष्ट तथा सम्मि. करने की शक्ति है, प्रत्येक को नहीं। दंपत्ति में परस्पर आकर्षण की बड़ी भारी आवश्यकता है। परस्पर आकर्षण समान प्रवृति आदि से ही होती है। समान प्रवृत्ति सजातीयता में ही मिल सकती है, विजातीयता में नहीं।

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