Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 58
________________ coce ५३ - संस्कृति और सभ्यता तो अधिकांशों में विलीन हो जायगी। इसी चिंता से सब लोग दुःखी हैं और स्वरक्षा अथवा स्वशासन की इच्छा रखते हैं। यदि आज भी यह विश्वास ही नही दिलाया जाय किन्तु वैसी प्रवृत्ति भी की जाय कि सब लोग अपनी २ जातियों और धर्मो में स्वतन्त्र रहेंगे, विभिन्न जातियों और विभिन्न धर्मों की मान्यताओं और प्रवृत्तियों में गवर्नमेंट कोई हस्तक्षेप नहीं करे तो किसी के भी हृदय में प्रतिक्रिया की भावना न हो और राज्य शासन में सबका आंतरिक पूर्ण सहयोग होजाय । इसके साथ पार्टी गवर्नमेंट बनाने को पाश्चात्य पद्धति का अनुकरण न कर समस्त दलों से योग्य व्यक्तियों का निर्वाचन कर सबकी सम्मति से देश के शासन की गाड़ी चलाई जाय तो देश के सारे संकट दूर हो सकते हैं । खेद है कि जाति भेद मिटाने की बात कही जाती हैं और जातीयता के आधार परही गवर्नमेंट चलाने का प्रयास किया जाता है। जाति एक वर्ग के लोगों के समुदाय का नाम है। कांग्रेस भी एक वर्ग की ही है। कांग्रेस समस्त वर्गो की प्रतिनिधि संस्था नहीं है । इसलिए उससे जातीयता अथवा जाति भेद को ही पुष्टि होती है। इसके अतिरिक्त यदि वास्तव में विचार किया जाय तो भारत को स्वतंत्रता जाति भेदके आधार पर ही मिली है। जों का शासन भारतवर्ष से हटाने में यही तो कहा जाता था कि ज भारतीय नहीं थे उस समय यही नारा था कि भारत पर भारतीयों का हो राज्य होना चाहिये। भारतीयता और अभारतीयता भी तो जातियां है। एक बात और भी है कि यदि भारत ने भार

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