Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 59
________________ ५४ तीता नामक जाति भेद को मिटा दिया तो भारत पर दूसरी जाति का भी शायन होजायगा क्योंकि मनुष्य जाति एक होने के नाते सब एक हैं । - जाति और धर्म । धर्म के लिए किसी जाति विशेष की आवश्यकता नहीं हुआ करती क्योंकि धर्म धारण का संबंध आत्मा से है और आत्मा धर्म धारण करने में द्रव्य क्षेत्र काल भावानुसार स्वतन्त्र होसकता है तथापि प्रायः व्यक्ति का धर्म भी वही देखा जाता है जो कि उसके माता पिता का होता है। धर्म को परीक्षा करके कोई धारण नहीं करता । मानव में धर्म की परीक्षा करने की बुद्धि भी नहीं होती । परीक्षा के लिए परीक्ष्य से हजार गुणी विद्या और बुद्धि की आवश्यकता है। माता पिता में धर्म की बासना अपने माता पिताओं तथा उनमें अपने माता पिताओं से आती है। इस प्रकार जाति से ही धर्म की वासना चलती है। अगर जाति नहीं रहती तो धर्म का तत्व भी मिट जायगा । धर्म का अस्तित्व मिटना बड़ा भारी भयंकर सिद्ध होगा । आज के लोगों को धर्म एक घातक वस्तु दीखती है परन्तु यह सर्वथा भूल है । धर्म, सुख का ही कारण होता है, दुःख का कदापि नहीं । धर्म को जो घातक वस्तु समझना है वह अत्यन्त भल के साथ २ धर्म के स्वरुप को ही न समझना है। धर्म का स्वरूप, वस्तु का स्वभाव है । संसार में दो ही वस्तुयें है । एक आत्मा और

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