Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 40
________________ ३५ विवाहादि बंद कर देते थे क्योंकि राजा लोगों से अतिरिक्त लोगों का राजनीति से कोई संबंध न था । राजनीति का संबंध राजा लोगों से था, प्रजाजन शासित रहते थे तब प्रजाजन जातिभेद को विवा - हादि बंद करने में ही कार्याविन्त करते थे । आज भारत का बच्चा २ राजनैतिक चक्कर में पद रहा है इसलिए विवाहादि की रोक टोक की तरफ न जाकर अपने गुट्टमें किसीको नहीं घुसने देता, अपनी सभा में दूसरे विचार वालों को बोलने नहीं देता, अपने हाथ में शासन भार आजाय तो अपनी पार्टी के मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति को भी सचित्र या शासक बनादिया जाता है और दूसरे दल के विद्वान्से विद्वान् को भी उपेक्षित करदिया जाता है । अपने थोक के व्यक्ति के हजार अपराध भी माफ होजाते हैं जबकि दूसरे थोक बाला विना अपराध भी वर्षों जेल में सड़ाया जाता है और उसके बालवच्चों की सिविल डैथ कराई जाकर अपनी अहिंसा और सत्य का नग्न प्रदर्शन कराया जाता है । क्या ये जातिभेद की बाते नहीं हैं ? वास्तष में जातिभेद मिट और अनिवार्य है । जबतक संसार में कषायाध्यवसाय बने रहेंगे तब तक जाति भेद भी बना ही रहेगा । कषायाध्यवसाय अनादि काल से है तो जातिभेद भी अनादि काल से ही है, कपायाध्यवसाय अनंत काल तक रहेंगे तो जाति भेद भीत काल तक रहेगा । इसलिए परम अनुभवी आचार्य श्री सोमदेव सूरिने जातियों को अनादि बतलाया है । संसार के चलने और बढ़ने में कारण हिंसादिक पंच पाप और क्रोधादि चार कषाय हैं । त्यक्क गृह और वीतरागी मुनियों में

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