Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 39
________________ - ३४ - के नामसे या ग्राम देशादि के नामसे प्रकार कल्पना होती रहती है और भिन्न रुचित्व, भिन्नाचार विचारत्व अनिवार्य और प्राकृतिक तत्व हैं । इस भिन्न रुचित्वादिमें कारण पक्षपात कषाय और स्वार्थ बुद्धिके अतिरिक्त तत्वानभिज्ञताभी होती है। तत्वकी अनभिज्ञता होनेसे एवं उसमें श्रद्धा और चारित्र के अभावसे थोकबंदी होजाती है और वह विविध रूप रूपांतरोंको धारण कर लेती है । उदाहरण में वर्तमान कांग्रेस ही ले लीजीये - भारतवर्ष से विदेशीय शासन को समाप्त करने के लिए कांग्रेस स्थापित हुई । इस उद्देश्य तक कांग्रेस का किसी से विरोध न रहा और कांग्रेस एक बड़ी राजनैतिक पार्टी ( जाति ) बनी रही। अंग्रेज लोग भारत में बिना किसी बीमारी के लगाये हुये जाने वाले न थे क्योंकि उन्हें अपने चिर शासन की याद दिलाते रहना था, भारतवर्ष के दो टुकड़े कर देने का प्रस्ताव रख दिया। जिसे शासन लोभ से कांग्रेस के चोटी के नेताओं ने मान कर अखंड भारत के टुकड़े करालिये। जिससे कुछ लोगों ने कांग्रेस के प्रतिक्रिया वादी बनकर अपनी एक पार्टी (जाति) बनाई, तो कुछ लोगोंने उपतर विचारों के कारण अपनी पार्टी (जाति) बनाई. कुछ लोगों ने उग्रतम विचारों के कारण और ही पार्टी (जाति) बनाई, तो कुछ लोगों ने कांग्रस में रहकर भी थोकबंदी बनाली, जिसका जीता जागता उदाहरण राजस्थान में है । इस तरह एकही कांग्रेस में अनेक पार्टियों (जातियों) की रचना हो गई। पहले के जमाने में जातिभेद से

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