Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 51
________________ -४६ - फैल जायगी और अनुशासन भंग होनेसे बड़ा भारी विलय मच जायमा । वर्तमान कालीन कांग्रेस नामक संस्थाको जाति पांनि हीन संस्था कही जाती है परन्तु कांग्रेस मेंही कितने दल (जातियां) हैं । कांग्रेस सेही समाज वादी दल बना, कांग्रेस सेही अभी हाल ही में किसान मजदूर दल बना, काग्रेस सही कम्युनिष्ट दल भी बना । विदित हुआ ह कि बीकानेर की कांग्रेस में ३ दल होगये और वे व्यक्तियों के नाम से कहे जाते हैं । राजस्थान का कांग्रेस म भी अनेक दल हैं। एक को एक जेल की हवा खिलाना चाहता है। मध्य भारत में भी मत भेद है। प्रायः सभा प्रांतों में दल बदी न जोर पकड़ रकखा हैं । जिसका कारण क्रोधादि चारकषाय हैं । इनके सर्वथा नष्ट हुये विना समभाव और एकत्यभाव कमी नहीं होसकता। किसीकी भी संसार के पदार्थो में समष्टि तभी हो सकती हैं जब कि उसके राग द्वषादि भाव सर्वथा नष्ट होगये हो अन्यथा केवल समभाव का प्रदर्शन मात्र है और निजस्वार्थ सिद्धि के लिए मायाचार का आडम्बर है। राग द्वेषरूप-परिणति का नाम ही संसार है। पिता, पुत्र, स्त्री, मित्र, धन, दौलत, जाति, पांति, कांग्रेस, रामराज्य परिषद्, हिन्दुसभो, रा. स्व० से० संघ, समाजवाद, साम्यवाद आदि ये सब रागद षपरिणति के ही स्वरूप हैं । संसार में रह कर सांसारिक

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