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टिंग और घूसखोरी में कारण है-अनर्गल विषय प्रवृत्ति की इच्छा की पूर्ति के लिये है धन की आवश्यकता । यदि यह प्रावश्यकता बनी रहती है तो उसकी पूर्ति के लिये भी मानव प्रयत्न किये बिना न रहेगा। चाहे वह प्रयत्न वैध हो या अवैध ? उचित हो या अनुचित ? आज के मानव को अनर्ग विषय प्रवृत्ति की बड़ी भूख है वह अपने जीवन में संयम नहीं रखना चाहता। वह संयम का शत्रु बन रहा है और उसे बनाया भी पैसा ही जा रहा है । उसको रात दिन साठों घडी यही सिखलाया जा रहा है कि खाने पीने और नारी परिग्रह में किसी प्रकार की सीमा मत रक्खो । मनुष्य जाति एक है इसलिये किसी की भी नारी या कन्याले आओ एवं कैसे भी किसी के भी अन्न जलादि से अपना पेट भरलो और जिन कार्यो से संयम रक्षा एवं इंद्रिय विजय हो उसे उठाकर ताक में रख दो। जिसी का परिणाम यह है कि आज के भारत का नैतिक आचरण देख लज्जा से मस्तक नीचा हो जाता है। एक दुर्भाग्य की बात यह भी है कि जिन पाश्चात्य देशों में घोर नैतिक पतन और असंयम है उसे आदर्श माना जाकर उसी का अनुकरण किया जा रहा है। मैं पूछता हूं कि जिन देशों को आदर्श मान कर आज भारत चरणन्यास करता है उन देशों में क्या इंद्विय संयम की कहीं चर्चा भी है ? वहां तो इतना संघर्ष है कि प्रति दिन और प्रति क्षण युद्ध की ही आशंका बनी रहती है। स्पर्शन और रसन इंद्रियों के विषय की प्रवृत्ति के अतिरिक्त कोई चर्चा ही नहीं, परलौकिक विश्वास नहीं,