Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 33
________________ २८ नहीं किन्तु एक ही दिन में भी अनेक आचरण जैसे पूजा पाठ, शस्त्रधार व्यापार सेवा आदि भी समय समय पर बदलते रहते है तो क्या। बार बार में वर्ण जाति भी बदलते रहेंगे ? यदि ऐसा होगा तो कोई व्यवस्था ही न बैठ सकेगी । इसलिये जाति वर्ण L व्यवस्था का निश्चय जन्म से ही हो सकता है और वही उचित भी है । जात्तियों के नाम क्या श्राचरण से हैं ? ब्राह्मणादि जो चार वर्ण हैं उनमें प्रत्येक वर्ण में अनेक जातियां हैं । कहा जाता है कि-ब्राह्मणों की एक जाति, सार स्वत ब्राह्म जाति को ४३६ शाखाऐं हे क्षत्रियों की ५६० और वैश्यों की छहसों से ऊपर हैं। शूद्रों की भी सैंकड़ों शाखाएं हैं परन्तु ये सब आचरण के कारण ही हों सी बात नहीं है । जैसे स्वण्डेलवाल जाति - वंडेल या खंडेलवाल नाम का कोई आचरण नहीं है। या तो खंडेल नामका कोई व्यक्ति हो सकता है या कोई नगर ? इसी प्रकार अगरवाल जाति के नाम में अगर नामका कोई व्यक्ति, ग्राम या नगर ही संभव है अगर नामका कोई अचरण नहीं । इसी प्रकार माहेश्वरो जाति में मद्देश्वर नाम का कोई व्यक्ति या ग्राम ही हो सकता हैं, महेश्वर नाम का आचरण तो कोई होता नहीं । ब्राह्मप्र में दात्रीच नामक एक जाति होती हैं जिसकी उत्पत्ति दधीचि नामक व्यक्ति से है, दधीचि नाम का कोई आचरण नहीं | क्षत्रियों में लावा और कुशवाहा नामक

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