Book Title: Jain Dharm aur Jatibhed
Author(s): Indralal Shastri
Publisher: Mishrilal Jain Nyayatirth Sujangadh

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Page 27
________________ २२ न्याय शास्त्र ओर जाति पदार्थ | न्याय शास्त्र, एक ऐसा शास्त्र है जिसमें प्रत्येक बात तर्क की कसौटी पर कसो जाती हैं। न्याय शास्त्र का बहुत बड़ा सम्मान्य ग्रंथ श्री प्रमेयमलमार्तण्ड हैं जिसके प्रणेता पूज्य पाद श्री प्रभाचंद्राचार्य हैं। जैन सिद्धान्त में जो पदार्थ माने गये हैं वे सब तर्क संगत हैं और वैशेषिकादिद्वारा माने गये पदार्थ तर्क संगत न होने से मान्य कोटि में नहीं आते यही इस ग्रंथराज का विषय है । वैशेषिक मतावलंबियों ने द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय ओर अभाव ऐसे सात पदार्थ माने हैं उनको तर्क से inted बतलाते हुए श्री प्रभाचन्द्राचार्य महाराज ग्रंथ में सामान्य पदार्थ का भी खंडन करते हैं। सामान्य और जाति दोनों एकार्थक हैं। " जातिः सामान्यम् सामान्य का अर्थ समानता और जाति शब्द भी समानता का वाचक है। जैसे जितने भी मनुष्य हैं उन सबमें मनुष्वत्व सामान्य रहता है। मनुष्यत्व सामान्य और मनुष्यत्व जाति दोनों का एक ही - 39 है । इस सामान्य पदार्थ का जो कि जाति का वाचक अथण वाच्य भी है श्री प्रभाचन्द्राचार्य ने खण्डन किया है जिसे हमारे आजकल के कतिपय न्यायतीर्थ अथवा अन्यान्य लोग भी जाति का खंडन समझते हैं। जब आठ कर्मों की उपप्रकृति जाति नामक है और जो भगवत्प्रीत सैध्दांतिक तत्व है उसका खंडन श्रीप्रभा चन्द्राचार्य सरीखे प्रबल महाश्रद्धालु व्यक्ति कैसे करते ?

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