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મુનિઓને જેલમાં બેસવા સંબધી લેખન પ્રત્યુતર. ૨૭ मुनिनने रेलमां बेसी शकाय एवी मतलबनाजैन पत्रमांआवेलालेखनो
प्रत्युत्तर.
“ विज्ञप्ति सर्व मज्जन पुरुषोंको ज्ञात हो कि “जैनपत्र” में कितने ही अंकोंसे इस विषयिक लेख आरहे थे, बलांक एक दफा जैन पत्रने एक शखसको जवाबभी दे दिया थाकि, इस विषयको अधिक चर्चना हम अच्छा नहीं समझते हैं. ऐसे जवाब देकर उसका लेख अपने पत्रमें नहीं लिया. पुनः अग्रीम अंकमें इसही बाबतका लेख आया. वोह खबर नहीं जिसको जवाब दे दिया था उसीका लेखथा, या किसी अन्यका, सो तो वोह आपही जाने. इस समय तक इस बावत कोइ अधिक ख्याल करनेकी आवश्यकता नहीं देखी गईथी, परंतु जब जैनपत्रका २२ मा अंक देखा तो दिलमें जरुर जोश पैदा हो गयाकि “जैनपत्र” जैनकी तरकी करनेका बेशक दावा करता है परंतु किसी किसी बातमें पक्षपातभी करता होवेगा ? अन्यथा २२ के अंकमें जो कुछ अपूर्व ज्ञान रैलके विहार बाबत छापा है न छापता. आपही बात ठंडी पड जाती. परंतु एकको मना करदेनी और एकको मना नहीं करनी यह न्याय क्या जाने न्यायरत्नके. अकलके फव्वारोंमे से कोई फव्वारा तो नहीं छूट गया है ? अस्तु ! मेरातो अधिकतर ख्याल इस वारेमें लेखनी उठानेका इसी खातर होया कि २२ के अंकमें कइएक महात्माओंके नाम लेकर भोले जीवोंको धोखा दिया गया है उसका निराकरण होजावे. तथा जिस गुरुकी आज्ञामे बाहिर होकर अपने छंदे एकाकी विहार करके जू
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