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શ્રી જનધર્મ પ્રકાશ. नकी निंदा छपवानेसे अपने आपको नुकशान होता देखकर अब उन्ही गुरु महाराजके शिष्य से अपने आपको खोटा मशहूर कर रहाहै, सो मालूम हो जावे कि अमुक शखस संघाड़ेने वाहिरहै. इस वास्ते इसको महाराज श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद सूरि ( आत्मारामजी ) महाराजका शिष्य मानना ऐसा है, जैसा कि कूलवालकको निजगुरुका शिष्य मानना ? अगर यह महाराजजी साहिबका शिप्य है तो श्री महाराजजी साहिवके अन्य शिष्योंकी तरह क्यों नहीं विचरता है ? तथा विद्यमान मूरि महाराजको क्यों नहीं कबूल करताहै ? जेकर करताहै तो श्री १००८ श्री कमल विजय मूरि महाराजजी इम वातको प्रसिद्ध करवा देवें कि अमुक शखस हमारी आज्ञामें है, इसको अब बाहिर नहीं समजना. जब तक यह बात न होवे तब तक चाहे कितनाही अपने आपको गुरु महाराजका भक्त जाहिर करे सज्जन पुरुष इस बातको कवी न मंजूर करे. इतना लिखनेका सबब यह है कि यह अपने आपको उन महात्माका नाम लेकर प्रसिद्ध करना चाहता है, और भोले लोक समझ जाते हैंकि यह महाराज श्री आत्मारामजी आनंद विजयजीका शिष्य है तो जो कुछ कहता है टीकहीहै. सो आज पीछे सबको ज्ञान होजावेगा कि यह श्री महाराजजी साहिबका शिष्य नहीं है. क्योंकि चौदह वर्ष होगये इसको श्री महाराजजी साहिवने अपने समुदायमें अलग कर दियाहै. इस बास्ते इसके किये किसी अनुचित कार्यका वट्टा महाराज श्री आत्मारामजी के, या उनके किसी साधुके जुमे हरगीज नहीं समझना. - विशेष महाराज श्री आत्मारामजीके बारेमें भी अंक २२ मे थोडीसी लेखनी गंदी करीहै उसके निराकरण वास्तेभी यह
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