Book Title: Jain Dharm Prakash 1903 Pustak 019 Ank 09 10
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir મુનિઓને રેલમાં બેસવા સંબંધી લેખને પ્રત્યુત્તર રરપ इंदके स्टेशनपर रैल आइ तो महाराजश्रीको अधिकतर मूर्छा आगई. आंखे बाहिर निकल आई. ल्यानेवाले श्रावकोंके होश उडगये. शोचने लगे कि अब क्या बनेगा? किसी पास जोगेभी नहीं रहे. परंतु शासन देवताकी कृपासे वोह विघ्न उसीवक्त शांत होगया. इतनेमें रेल अंबाला शहरके स्टेशनपर आपहुंची. अंबालाके श्रावक प्रथमसेही तारके आनेसे स्टेशनपर जापहुं. चेथे. झट गाडीसे उतारके शहरमें उठाकर ले आए. दश दिनोंतक महाराजश्रीको कोइ पता ठीक ठीक नहीं लगाकि मैं कहां हूं ? जब ग्यारहमें दिन कुछक विमारीका मौडा पडा तो पता लगाकि यहतो अंबाळेके मकान मालूम देता है और मैंतो लुधीआने था ! मेरे साथमें साधु और थे, और यहां औरही दिखाई देते हैं! यह क्या बात है ? तब साधु और श्रावकों ने हाथ जोडकर सब बात मुनादी, मुनकर बहुतही नाराज हुए. परंतु क्या बनसक्ताथा. वींधा गया सो मोती. उसीवक्त शहर अहमदाबादमें गणिजी महाराज श्री श्री श्री १००८ श्री मन्मुक्तिविजयजी [ मूलचंदजी ] महाराजजीको पत्र लिखवाकर सब हकोकत मालूम करी गई, और बदलेमें प्रायश्चित्त मांगा गया. श्री गणिजी महाराजने जो कुछ प्रायश्चित्त कृपा किया महाराजजो साहिबने स्वीकार कर लिया. अनुमान तीन महिने वाद अंबालासे विहार किया. शरीर कमजोरा होनेसे रस्तेमें फेर हरकत थोडीसी होगइ. इसी तरह कबो राजी कबी बिमार छै महिनेतक यही हाल रहता रहा. छै महिने बाद आराम होगया ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only

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