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श्रीन . अब मैं इस लेखको समाप्तिमें श्री चतुर्विध श्रमणसंघके आगे हाथ जोडकर अपने इस लेखमें कोइ जैन शैलिसे विपरीत लेख लिखायागया होवे उस बावत मिथ्या दुःकृत देताहूं, और प्रार्थना करताहूं कि ऐसे ऐसे स्वच्छंदे चलनेवाले साधुओंके वास्ते जलदी कोइ इंतजाम करना अच्छा है. अन्यथा दिन प्रतिदिन साधु विलकुल ढीले होजायेंगे, और रीति भांति बिगड जावेगी. श्री सत्यविजयजी यशोविजयजी उपाध्यायजी महाराजजी आदिने क्रिया उद्धार करके पिछाणकेलिये श्वेत वस्त्र हटाकर, पीतकी व्यवस्था करदी. जो कि आजतक प्रायः ठीक २ चल रही है. जब पीतमेंभी सडा पडनेलगा तो फैर पिछाणके वास्ते क्या कृश्न वस्त्र चलाओंगे ? इस वास्ते पानी पहिलेही पाल वांधनी अच्छी है. तथास्तु॥
लेखक श्री संघका दास.
मुनि वल्लभविजय.
हाल मुकाम-शहर अंबाला-पंजाब.
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