Book Title: Jain Dharm Prakash 1903 Pustak 019 Ank 09 10
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir યુનિઓને જેલમાં બેસવા સંબંધી લેખને પ્રત્યુત્તર રર૭ रेलपर चढ़ना नहीं आताथा? क्या उनको कोइ टिकिट दिलाने पाला नहीं था ? जानबूझकर उनको तकलीफ सहन करनी अ. च्छी लगतीधी? क्या उनको इस अपूर्व शास्त्रका "जिसमें गीतार्थ मुनि रैलद्वारा विहार करे कोइ हर्जकी बात नहीं फरमाया है" ज्ञान नहीं था ? जो रैलमें बैठकर आये गये नहीं, और नाइक तकलीफें उठाई !! पुनः जिसवक्त महाराज साहिबजीका चतुर्मास सुरत शहरमें था मुंबईके भाविक श्रावकोंने मुंबई पधारनेकी विनती करी,और अर्ज गुजारी कि हम एकसौ आदमी आपके साथ सचित्तका त्याग करके पैदल चलेंगे और पुलके वास्ते रैलबालों को हरजाना मुंहमांगा देकर आपको पुलपरसे सजानेका इंतजाम करलेवेंगे. यह बात प्रायः सर्वत्र प्रसिद्ध है. जिनमेंभी मुंबई और सुरतवाले सो खास करके इस बातको जानते हैं. जेकर महाराज श्री आस्मारामजी " रैलद्वारा विहार मुनिजन करे कोई हरकत नहीं" इस बात के पाबंद होते तो फौरन कहदेते कि भाइ श्रावको ! तुम किसवास्ते इतनी तकलीफ उठातेहा? हम रैलमें सवार होकर चलेंगे. ऐसे २ मोक्येपर कोई हर्न की बात नहीं हैं. परंतु उन्होंने रैलके वारेमें कुछभी अपनी राय नहीं जाहिर करी. क्या उसवक्त शांतिविजय सोया हुआथा? नहीं नहीं मैंही भूलताहूं ! उसवक शांतिविजय गीतार्थ नहीं था, अब गीतार्थ होगया !! क्योंकि उसवक्त थोडा बहुता गुरुका कहना मानताया !! For Private And Personal Use Only

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