________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२२४
શ્રી જનધર્મ પ્રકાશ भाग्यवान घर होगा कि जिसमें कोई न कोई विमार नहोगा.सा. धुभी कुलके कुल बिमार हो गयेथे. एक महाराज साहिबही राजीथे जोकि आप साधुओंको दवाइ वगैरह ल्या देतेथे, गौचरीभी आपही जाया करते थे. दैवयोगसे एक साधु काल कर गया. बाकीके विमारहीथेकि महाराजश्री आत्मारामजीको बुखार चढ गया. थोडेही दिनों में इस कदर बुखारने जोर देदियाकि शरीर बिलकुल कमजोर हो गया, और आठोपहर इस कदर बुखार की धूकी रही कि होश हवास भी कायम नहीं रहे. पासके साधु भी प्रायः बिमार होनेसे जैसी कि सारसंभाल इस मौक्येपर लेनी चाहिये नहीं ले सक्तथे. नाचार श्रावक लोक सब ना उमैद होगये. किसीको आशा नहींथीकि महाराज श्रीकाशरीर रहेगा. परंतु भव्यजीवोंके भाग्य कुछ अच्छे थे जो दो श्रावक, एक लाला गोपीमल्ल तथा एक लाला वसंवरदास लुधीआने वाला, और एक लाला कवरसेन मालेरकोटलावाला. तीनोंही उत्सर्गापवाद के अच्छे ज्ञाताथे. उनके दिलमें स्वाभाविकही जोश आ गयाकि अब क्या देखते हो ? यह शोचां करने का मौक्या नहीं है, उमैद तो नहीं है कि बच जावे तथापि कोइ द्रव्य क्षेत्र काल भाव बन जावे और हमारे तुमारे पुण्यका उदय होजावे महाराज साहिबकी जींदगी बच जावे तो और क्या चाहिये ? इस वास्ते जलदी इस बलती आगमेसें निकाल कर इनको शहर अंबालामें पहुंचाये जावेंतो ठीक है. क्योंकि एकतो वहांकी आब हवा इस वक्त अच्छी है, दूसरा श्रीलक्ष्मीविजयजी (विशनचंदजी ) महाराजजी आदि साधु महाराजभी वहां पर मौजूद हैं. इनकी बयावच्च वगैरहभी अच्छी तरहसे होवेगी, अपने तरफसे उद्यम करना योग्य है, आगे भाविभाष बलवान् है, जो कुछ अपने भाग्यमें होवेगा बनेगा. ऐसे विचारकर एकदम उठाके ल्या रैलमें लंवे पादिये. जब सर
For Private And Personal Use Only