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મુનિઓને રેલમાં બેસવા સંબંધી લેખને પ્રત્યુત્તર રર૩
पुनः न्यायरत्न अपने अपलक्षणको छिपाने के लिये सांप्रत समयमें अति प्रसिद्ध गीतार्थ माहात्मा श्री श्री श्री १००८ श्रीमद्विजयानंद मूरि ( आत्मारामजी) महाराजजीका नाम लेकर लिखताहै कि-"देखो?महाराज श्रीआत्मारामजी आनंदविजयजी मुल्क पंजाब शहर लुधीहानामें विराजतेथे उसवक्त वहांपर बीमारी चलीथी तब श्रावकोंने सौचाकि ऐसे मुनिरत्रको दूसरे शहरमें लेजाना चाहियेकि जहां बिमारी न हो लुधीहानेके श्रावक साथ होकर महाराज श्री आत्मारामजीको रैलमें बैठाकर अंबाला शहरमें लाये" सचहें 'आप डूबे ब्राह्मना साथ डोबे यजमान' इस छोटीसी कहानीके मूजिब आपतो पतत होनेका धंदा कर बैठा, साथमें अन्य भद्रिक जीवोंकोभी अपने फंदमें फंसानेके लिये महात्माका नाम लिखकर चालाकी करगया ! क्योंकि महाराज श्री आत्मारामजीका पूर्ण वृत्तांत इस विषयक न्यायरत्नने नहीं लिखा है ! क्यों लिखे ? यदि ठीक ठीक पूरा पूरा वृत्तांत लिखता तो उसकी दाढ कैसे गलती ? प्रथम तो जिस समय यह बात बनीथी उसवक्त यह मुंडित भी नहीं हुआथा, और पीछेसे मुनि हुई वातको भी अपने मतलव के वास्ते गोल मोल कर गया है. इस वास्ते पूर्वोक्त विषयमें जो कुछ वृत्तांत बनाया उसवक्तके साधु और श्रावक जिनके रूबरु यह काम बनाया उनके कथनानुसार यहां लिखा जाताहै जिससे सर्व भव्य अत्मार्थी साधु साध्वी श्रावक और श्राविकायोंको मालूम हो जावेगाकि न्यायरत्नका न्याय कैसा अपूर्व है !! ___संवत् १९३५में श्रीमहाराज श्रीआत्मारामजी साहिबने अन्य छै साधुओंकेसाथ सातमे आप लुधीआना नगरमें चतुर्मास कराया. चातुर्मासके आखीरी समयमें इसकदर शहरमें विमारी शुरू होगई कि प्रतिदिन करीवन३०० तीनसौ आदमी मरतेथे.ऐसा कोइकही
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