Book Title: Jain Dharm Prakash 1903 Pustak 019 Ank 09 10
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ર૦૮ શ્રી જૈનધર્મ પ્રકાશ कर रहने लगे और औरोंको बुलाने लगे कि यहां यही प्रधान है उस सार्थमें कितनेही पुरुषोंने यह बात सुनी और कितनेहीने नहीं सुनी जिन्होंने मुनी वोह क्षुधा तृषाके भागी हुए और जिन्होंने नहीं सुनी वोह शीघ्रही अप्रतिबद्ध होकर रस्तेको लंघके शीतल पानी और छायाके भागी हुए । जैसे वोह पुरुप सीदाए गये वैसे पासत्यादिक जानने. और जैसे वोह पार लंघ गये वैसे साधु जानने ॥ श्रीआवश्यक सूत्रका पाठ यहहै जे जत्थ जदा भग्गा । उपमं ते परं अविदंता ॥ गंतुं तत्थ वयंता । इमं पहाणंति घोसति ॥॥ व्याख्या ॥ ये साधवः शीतलविहारिणः यत्रानित्यवासादो यदा यस्मिन् काले भग्ना निविनाः अवकाशस्थानं ते परं अन्यत् अविदंतत्ति अलभमानाःगंतुं तत्र शोभने स्थाने अशकनुवंतः किं कुर्वन्ति इमं पहाणंति घोसंति यदस्माभिरंगीकृतं सांप्रत कालमाश्रित्येदमेव प्रधानं इत्येवं घोपयंति ॥ दितो इत्थ सत्थेणं । जहा कोइ सत्थो पविरलो दकरुरुखच्छायं अद्धाणं पवत्तो तत्थ केइ पुरिसा परिस्ता पविरलामु छायासु जेहिंवा तेहिंवा पाणिहि पडियद्धा अच्छंति अण्णेय सद्दावेंति इह इमं चेव पहाणांत तंकि सत्य केइ पुरिमा सुति केइ न सुणति जे सुणेति ते छुहातण्हा इयाणं आभागो जाया जे न मुणेति ते खिप्पामेव अप्पडियद्धा अद्धाण सीसं गंतुं उदगस्म सीतलस्स छायाणं च आभागिणो जाया जहा ते पुरिसा विसीयति तहा पासत्थादी जहा तेणिच्छिण्णा तहा माह ॥ वज्रस्वामीका अवलंबन लेनेके वास्ते न्यायरत्नने लिखा है कि “ वज्रस्वामी धर्मकी तरकीके लिये फूलोंका विमान भरकर क्यों लाये ? क्या मुनियोंको वनस्पतिका संघटा करना लाजिम था ?" इस कहनेका तात्पर्य यह मालूम होताहै कि जैसे वज्रस्वामी फ For Private And Personal Use Only

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