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મુનિ અને રેલમાં બેસવા સંબંધી લેખન પ્રત્યુત્તર ર૩ .. तथा चित्तना अभिपाय ते भाव कहीये ते भाव, जे परावर्तन के० पलटाव तेणे करी जवा पोताना अभिप्राय थाय तेवं कांइक आलंबन पामीने तत्काल ते आलंबन धरे के० अंगीकार करे ने आलंबन केहq होय ते कहेछे सपंक के० मेलं होय एटले ए भाव जे चित्तना अध्यवसाय तो क्षणे क्षणे पलटाय छे ते चित्तना अभिप्राय कोइक अवसरे हीणा थाय अने निमित्त पण तेधुंज मले ने बारे पोते पण तेयोन याय-यतः
एगइनसेणबहुआ सुहाय असुहाय जीव परिणामा ॥ इकाय मुहपरिणओ चइज आलंबणं लटुं ॥ १ ॥ आलंबन हीणुं पामीने चइज के० संयमने छांडे इत्युपदेशमालायां। वली एक जणे एकलो बिहार कीघो एटले बीजाने पण एकला विचरवातुं मन थाय तेमज त्रीजो तथा थोथो इत्यादिक जूदा जुदा यातां एटले अवस्था न रहे तथा थिरकल्पनो भेद थाय एटले आपगते कोइक क्रिया एक रीतें करे कोइक बीजी रीतें करे एम भिन्न भिन्न थाय तेथी लोकना मन डोलाय जे अमुक साधु करे छे ते खरुं छे क अमुक साधु करे छे ते खरुं छे ? इत्यादिक विकल्प लोकने उपजे तेथी धर्मनो उच्छद थाय कोइ उपर गलीत रहे नहीं ते वारे लोक मूलगो धर्मज मूकी आपे ॥ गाथा ॥ सव्वजिणंपडिकुठं अणवत्था थेरकप्पभे ओय ॥ इत्युपदेशमालायाम् ।।
प्रसंगोपात पूर्वोक्त वर्णन लिखके अब श्री कालिकाचार्यका लडाई संबंधि थाडासा वर्णन लिखा जाताहे जिससे धर्माभिमानी पुरुषोंको ज्ञात हाजावेगा कि श्री कालिकाचार्य के कार्यमें और न्यायरनको लकी शेरमें कितना भारी अंतर है ?
उज्जयिनी नामा नगरी में भव्य जीवोंको प्रतिबोध करते हुए कितने दिन व्यतीत होए. इतनेमे भवितव्यताके वशमें वहां
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