________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
મુનિઓને રેલમાં બેસવા સબધી લેખના પ્રત્યુતર
૧૫
आदमी आगे पड़ी वस्तुको नहीं देखता है. परंतु रागांध पुरुष तो विद्यमान वस्तुको त्याग के अविद्यमान को देखता है. जिस कारणसे अशुचिसे भरे हुए ऐसे स्त्रीके शरीरमें - कुंदके फुल समान दांत, कमलके समान नेत्र, पूर्ण चंद्रमा के समान मुख, सोनेक कलश समान स्तन और शोभायुक्त लतापल्लव समान हाथ पैरइत्यादि आरोप करके खुशी होता है. पुनः सूरि महाराजने कहा हे राजन् तूं इस साध्वीको छोड दे, अन्याय न कर तेरे अन्यायमें प्रवृत्त होए और कौन न्यायवान् होता है ? ऐसे कहने परभी जब राजाने कुछभी नहीं माना तो श्री कालिकाचार्य ने Tags श्री संघ राजाको कहाया. जब उसने श्री संघकाभी कहना किसी प्रकार नहीं माना तब क्रोधके वश होकर श्रीकालिकाचार्यने ऐसी घोर प्रतिज्ञा करी कि जो मैं इस भ्रष्ट मर्यादा वाले गर्दभिल्ल राजाको राज्यसे उन्मूलन न करूं तो जिस गति को संघ प्रत्यनीक, प्रवचनके नाश करनेवाले, संयम के नाश करनेवाले तथा उनको उपेक्षा करनेवाले प्राप्त होवे उस गतिको प्राप्त होउं ॥
मैं
और इस समय यह काम जरूरही मुझे करना योग्य है क्यों कि आगममें कहा है कि सामर्थ्य के होते हुए आज्ञा भंग करने वाले पर उपेक्षा नहीं करनी किंतु प्रतिकूलको शिक्षा देनी योग्य है । तथा साधुके और चैत्यके प्रत्यनीक अवर्णवादके बोलने वाले और प्रवचनके अहितकारी इन सर्वको अपना जितना सामर्थ्य होवे उतना लगाकर हटा देवे || इस वास्ते पूर्वोक्त प्रतिज्ञा करके पीछे श्री कालिकाचार्यने शोचाकि यह गर्दभिल्ल राजा गईभी विद्या प्रभाव से अति बलवान है, इस वास्ते किसी उपाय करके इसको उन्मूलन करना योग्य है. ऐसे विचारकर कपट करके
For Private And Personal Use Only