Book Title: Jain Dharm Prakash 1903 Pustak 019 Ank 09 10
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir મુનિઆને રેલમાં બેસવા સંબધી લેખના પ્રત્યુત્તર २०७ संघ मंजूर किये अकेले के स्वच्छंदतासे निकाले कानूनको सर्वत्र सर्वथा मान्यता न होगी. मेरा इरादा वादानुवादमें उतरनेका नहीं है किंतु फकत न्यायरत्नके लिखे नामोंमे से कितनेकका संक्षेपसे यथास्थित ब्यान लिखनेका है, जिससे चतुर्विध श्रीसंघको जाहिर होजावेगा कि इसमें सत्य सत्य वात क्या है और न्याय रत्नने किस तर्फ खींचली हैं. प्रथमतो तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी, श्रीमुनिसुव्रत स्वामी, तथा श्री विशुकुमारमुनि, श्रीस्थूलभद्रस्वामी, श्रीवत्रस्वामी वगैरह दृष्टांत दिये हैं सो वोह तो आगमव्यवहारी थे. उन्होंने जो काम किया सो औरोंनेभी करना यह जैनशास्त्रकी शैलि नहीं है किंतु उन्होंने जो आज्ञा फरमाइ उसका पालन करना औरौंका जरूरी फरज है यह जैन शैलि हैं. विश्शुकुमारने जो काम किया सो कैसे मौक्येपर आकर किया है उसका वृत्तांत प्रायः सबको रोशन है. क्या रैलमे सवार होने के वास्ते कोइ एसा मौ क्या आवना है ? श्रीस्वामी नामसे धोखा देना यहभी श्री आवश्यक सूत्र की श्रीहरिभद्र सूरि महाराज लिखा है कि विहुंदा काम है. विरचित्त टीका में For Private And Personal Use Only जो साधु शतिल विहारी हो जाते हैं वोह शुभ ठिकाने जानेको असमर्थ होने से ऐसे कहने लग जाते हैं कि सांप्रत कालमें जो हमने अंगीकार किया है सोही ठीक है इस बातपर दृष्टांत देते हैं | यथा कोई सार्थ कहीं कहीं थोडा २ पानी और थोडी २. वृक्षकी छायावाले रस्तेमें प्राप्त हुआ वहां कितने आदमी थ के हुए विरली विरली छाया में ऐसे वैसेही पानी में प्रतिबद्ध हो

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