Book Title: Jain Dharm Prakash 1903 Pustak 019 Ank 09 10
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir મુનિઓને રેલમાં બેસવા સંબંધી લેખને પ્રત્યુત્તર. ૨૦૦ लोको ले आये ऐसे मैं रैलकी सवारी करताहू परंतु इस बातका उत्तर शास्त्रकारले आप श्री आवश्यक सूत्र में दियाहै देखो___ श्री आवश्यक सूत्र में लिखा है कि--मंहधर्मी श्रीवत्स्वामीकी निश्रा करके अकृत्य असंयम सेवन करते हैं परंतु बोह मंदबुद्धि श्रीवत्रस्वामीका आलंबन लेते हुए यह नहीं देखते हैं कि वोह मौक्या केसा था ? उस दिव्य नाके करनेसे वौद्धोंकी अपभ्राजना हुइ, स्वतीर्थकी महिमा हुई और श्रापकों की वत्सलता हुई इन बातोही तो आलंबन गिनते हुए गिनती ही नहीं करते फकत फूलों का लानाही गिनती में गिनतह।। श्री आवश्यक सूत्रका पाठ यहहै।। चेइय कुर गणसंघे । अण्णंवा किंचि काऊ जिस्लाणं ॥ अहवावि अज्ज पइरं । तो मेवेती अकणिज्जं ॥ व्याख्या ॥ चैत्यकुलग णसंघं अन्यदा किंचिद पुष्टमब्यच्छित्यादि कृत्वा निश्रां कृत्वा रंवन मित्सर्थः कथं नास्ति कश्चिादेह त्यादि पातेजागरकाअतोऽ स्माभिरसंयमों गीकृतः। माभूञ्चैत्यादिव्यवछेद इति । अथाप्याचे वैरं कृत्वा निश्रां ततः सेवंते अकृत्यं असंयमं मंइधर्मा इति गाथाथः। चेइयपूया कि वइरमामिणा अणियपुर सारेण । न क्या पुरियाए ततो मोरुवंग सावि नाणं ॥ व्याख्या । अक्षरार्थः सुगमः भावार्थः कथानकादायतबामः यथितमेव । तत्र देरस्थामिनमालंबनं कुर्वाणा इदं नेक्षने महाधियः तिमिलाइ ॥ ओभावणं परेमि । सतित्व प्रावणं न वच्छल ॥ नमति गणे माणा । पुवुचिय पुप्फ महिमच ॥ दारं ॥ व्यागमा । अपभाजना लां छमा परेपा शाक्यानां स्वनीद्वावनं च दिव्य प्रणाकरणेन तथा वात्सल्यं श्रावकाणा मेतनगणयंत्यालंबनानि भणयंतः संतः तथा पुवावचिय पुष्फयहिनानं च गणयंतीति पूर्वावचितैः मा ग्गृहीतः पुष्पैः कुसुमैः महिमा यात्रा तामिति गापार्थः ।। For Private And Personal Use Only

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