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સુનિઆને રેલમાં બેસવા સખધી લેખતા પ્રત્યુત્તર ૨૦૫
प्रयास फलीभूत समझा जाता है. साथमें इस लेख के लिखनेसे कितनेक साधु तथा श्रावकों की प्रेरणाभी सफलताको माप्त हुई समझी जाती है. इति दिक किम्बहुना आत्मार्थिपुरुष समुदायेषु ॥ श्र। संघका दास
मुनि वल्लन विजय अंबालाशहर - पंजाब
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नमः श्रीपरमात्मने
“चतुर्विध श्री जैन संघसे प्रार्थना "
रविवार ता. १३ सीतंबर १९०३ अंक २२ के जैनपत्र में [ न्या यलीन मुनिरत्नोको रैलमे बैठनेका खुलासा ] इस हैडिंगका एक आर्टिकल मेरे देखने में आया. सखत अफशोस हुआ कि देखो जगत में कैसे कैसे विचित्र अभिप्रायके मतलबी जीव हैं जोकि शास्त्रोंको खींच खांचके अपनेही मतलवकी सिद्धि वास्ते शस्त्र रूप बनाते हैं. यद्यपि मैं जानताहूं कि इस शखसको हित शिक्षा फलदायी नहीं होवेगी और न इसने किसीका कहना मानना भी है क्योंकि जब जिस गुरुकी ओट में अपने आपको मशहूर करना चाहता है उसी गुरुकी हित शिक्षा मानी नहीं उनकी ही आज्ञा मंजूर न करी तो मेरे सरीखेकी बात कौन मंजूर करता है ? यह
निश्चय प्राय: है कि इस लेखको देखकर मेरे विषय में अपनी लेखनी उठावेगा परंतु इस बातकीं मुझे कोई परवाह नहीं है क्यों
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