Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 18
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 11
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१८/९ दृढ़ शील के धनी : सेठ सुदर्शन अंगदेश में चम्पानगरी का राजा गजवाहन था। वह अत्यन्त सुन्दर तथा बहादुर था। उसने अपने समस्त शत्रुओं को हराकर अपना राज्य निष्कंटक बना लिया था। गजवाहन की राजधानी में एक वृषभदत्त नाम का सेठ रहता. था। उसकी अर्हत्दासी नाम की स्त्री थी। वह शीलवती थी। सेठ को अपनी स्त्री के प्रति अत्यन्त प्रेम था। इसप्रकार दोनों का दाम्पत्य जीवन आनन्द से व्यतीत हो रहा था। सेठ के यहाँ एक सुभग नामक ग्वाला था। एक दिन एक ऐसी घटना बनी, जिससे उस ग्वाले के जीवन में महान परिवर्तन आ गया। घटना यह थी कि ग्वाला जब जंगल से अपने घर आ रहा था, तब उसने मार्ग में एक शिला पर एक मुनिराज को ध्यानस्थ देखा। दिन अस्त होने का समय हो रहा था और सर्दी के दिन थे। ग्वाले ने विचार किया कि सर्दी के दिनों में शिला के ऊपर एक भी वस्त्र बिना मुनिराज रात्रि किसप्रकार व्यतीत करेंगे? दयाभाव से प्रेरित होकर वह अपने घर गया और अपनी स्त्री से मनिराज का सम्पूर्ण वृतान्त कह सुनाया। __ तत्पश्चात् ग्वाला मुनिराज के समीप गया और उसने देखा कि मुनिराज . का सम्पूर्ण शरीर सर्दी में ओस से भीग रहा है; परन्तु मुनिराज उसी शिला पर अन्तर्लीन होकर ध्यान में बैठे हैं। उस ग्वाले ने भक्तिभाव से प्रेरित होकर ओस से भीगे हुए उनके शरीर को वस्त्र से साफ किया। इसप्रकार ग्वाले ने सम्पूर्ण रात्रि मुनिराज की सेवा में व्यतीत की। प्रभात होते ही मुनिराज ध्यान में से बाहर आये। मुनिराज ने ग्वाले को भक्तिभाव से सेवा में रत देखकर पवित्र पंच नमस्कार मंत्र दिया। जिसको प्राप्त करके मनुष्य स्वर्ग-मोक्ष के समस्त सुखों को प्राप्त करता है। मुनिराज भी मंत्रोच्चार करते हुए आकाशमार्ग से विहार कर गये। ___यहाँ ग्वाला सोते-जागते, उठते-बैठते निरन्तर णमोकार मंत्र का जाप करने लगा। वह किसी भी कार्य का प्रारम्भ करने से पूर्व इस पवित्रं मंत्र की

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