Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 18
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 43
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१८/४१ परमप्रिय दीवानजी को फिरंगियों को क्यों सौंप दिया? क्या अपराध था उनका? झूथाराम - ज्ञात होता है कि अमरचन्दजी की गिरफ्तारी के रहस्य से प्रजा अवगत हो चुकी है। यह रोष उसी का है। जगतसिंह – अमरचन्दजी इस घटना से पूर्णत: सावधान और सजग थे। इसीलिये उन्होंने एजेन्ट से सांगानेर चलने की शीघ्रता की। अच्छा होता यदि जनसमूह कुछ पहले आ जाता। पर....... झूथाराम – तब तो एजेन्ट साथियों सहित यहीं ढेर हो जाता। उसकी क्या हस्ती थी कि विशाल जनसमूह में से दीवानजी को ले जाये। क्रुद्ध प्रजाजन सबको जीवित न छोड़ती। नेपथ्य से - यदि राज्य दीवानजी की रक्षा करने में असमर्थ था तो हमें क्यों न आगाह किया गया। हम कारण जानना चाहते हैं। जगतसिंह -दीवानजी ! आप ही जाइये और प्रजा को सांत्वना दीजिये। सचमुच आज उसका हृदय सम्राट उससे छीनकर कहीं दूर ले जाया गया। (दुखित स्वर से) दीवानजी ! प्रजा को समझाइये। (झूथारामजी बाहर जाते हैं। नेत्रों से अविराम अश्रुपात हो रहा है। दीवानजी को दुखी देखकर विकल जन-समूह सन्नाटे में आ जाता है। शनैः शनैः दो चार प्रमुख जन आगे बढ़ते हैं।) ___एक नागरिक - (नम्रता से) दीवानजी क्या बात हो गई ? छोटे दीवानजी को फिरंगी गिरफ्तार कर क्यों ले गये ? और वे कब लौटेंगे ? झूथाराम - (जोर-जोर से रो पड़ते हैं) भाइयो ! अमरचन्दजी साहब ने स्वयं आत्म समर्पण कर दिया। क्या बताऊँ कुछ कहते नहीं बनता । समझो, हमारे राज्य पर महान् विपत्ति के काले बादल मंडरा रहे हैं। हम किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो रहे हैं। हमारे परम स्नेही हमारे बीच नहीं हैं। आप सबसे विनय है कि सब मिलकर उनकी मंगल कामना करें। नागरिक - (जन समूह से) चलो भाई चलो ! इस जटिल समय में

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