Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 18
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 71
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१८/६९ णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं । .. चामुण्डराय एवं मलिषेण ! आप दोनों कलश लेकर दोनों ओर से भगवान का अभिषेक करें। तत्पश्चात् बारी-बारी से अन्य सज्जन भी इस क्रम से अभिषेक करेंगे। हम मंत्र पढ़ते जाएँगे । (अभिषेक प्रारंभ हो जाता है । जनसमूह के जयघोष की तुमुल ध्वनि में पण्डितजी की मंत्रध्वनि डूब जाती है। सब अपने-अपने कलश में जल लाकर अभिषेक कर रहे हैं। सभी को अभिषेक हेतु जल्दी है, अतः जल्दी आगे बढ़ने का उपक्रम कर रहे हैं ।) पण्डितजी – बंधुओ ! शान्ति रखें। सबको अभिषेक का अवसर मिलेगा। जो बन्धु अभिषेक कर चुके हैं, वे कृपया बैठ जाएँ । (कतिपय सज्जन बैठ जाते हैं। कार्यक्रम यथावत् चल रहा है। एक छोटा बालक अपना छोटा सा कलश लिए अभिषेक करने की अभिलाषा लिए आगे बढ़ता है । परन्तु जनसमूह उसे पीछे ठेल देता है । एक सज्जन का धक्का खाकर वह गिर पड़ता है, किन्तु कलश का जल गिरने नहीं देता । पर निराश होकर एक ओर खड़ा होकर रोने लगता है ।) एक सज्जन बालक ! क्यों रो रहे हो ? ― बालक -- मुझे अभिषेक करना है भगवान का ! मेरी माँ रुग्ण है। घर कोई और है नहीं, अस्तु मैं आया हूँ । माँ ने मुझे भेजा है। एक सज्जन तुम छोटे हो वत्स ! बालक (रोते हुए) तो क्या छोटे अभिषेक नहीं करते ? दूसरे सज्जन - कलश का जल फेंक दो। माँ से बोल देना कि अभिषेक कर आया हूँ। --- - बालक आप इतने बड़े होकर असत्य बोलने को कह रहे हैं ? एक सज्जन – नहीं बेटे ! तुम्हारी माँ के संतोष के लिए कह रहा हूँ ।

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