Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 18
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 76
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१८/७४ राजा ने इसका कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया और कहा - आज रात्रि हो चली है सभी अपने-अपने घर जाओ, कल सभा लगेगी। उसमें विधिवत् उत्तराधिकारी की घोषणा करूँगा। आप में से ही किसी को उत्तराधिकारी बनना है। सब अपने-अपने घर चले गये। सब अपने मन में राजा बनने की उत्सुकता लिए हुए रात भर सो न सके। प्रातः होने पर सभी सज-धजकर सभा में जा पहुँचे, जनता भी खचाखच दरबार में उपस्थित थी। सभी मंत्रीगण मंच पर उपस्थित थे। भगवान और राजा के अतिरिक्त किसी को भी यह ज्ञात नहीं था कि कौन राजा बनेगा ? कुछ ही देर में राजा मंच पर उपस्थित हुआ। उसने आते ही उस व्यक्ति को बुलाया जो बिना लकड़ी तोड़े ही वापस आ गया था। वह व्यक्ति मंच पर पहुँचा । राजा ने अपना मुकुट उसके मस्तक पर लगाया, उसे राज सिंहासन पर बैठाकर उसका राजतिलक कर दिया। उसे अपना उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा कर दी। सभी दाँतों तले अंगुली दबाने लगे थे यहाँ तक कि उत्तराधिकारी भी। वह हैरत में पड़ गया था कि मुझे राजा कल क्या कह रहे थे और आज यह क्या कर रहे हैं। आखिर उससे न रहा गया। उसने समस्त जनता के समक्ष राजा से यह प्रश्न पूछ ही लिया - आपने उन सबको राजा न बनाकर मुझे ही क्यों राजा बनाया ? राजा ने कहा – तुम इस योग्य हो। तुम कोई भी अनीतिपूर्वक कार्य नहीं कर सकते हो, क्योंकि तुम्हें यह भान है कि इसे देखने वाला भी कोई सर्वज्ञ है। शेष सबको राजा इसलिए नहीं बनाया कि वे सर्वज्ञ को जानते ही नहीं हैं। अत: कोई भी अनीतिपूर्वक कार्य करने में उन्हें संकोच नहीं होगा। ___ सबको राजा की बात बहुत पसंद आई। राजा ने यह सच्चा परीक्षण किया था। जनता ने राजा को साधुवाद दिया और नवीन राजा का अभिवादन कर उसे अपना राजा स्वीकार कर लिया। अब जनता को पूर्ववत् ही प्रजापालक, आस्तिक राजा मिल गया था, समस्त जनता खुश थी। - डॉ. महावीरप्रसाद जैन

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