Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 18
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 49
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१८/४७ एजेन्ट - ऐसा क्यों ? अम आपसे वायडा करटा हय कि अमरचन्दजी को अब्बी छोड़ देगा। झूथाराम - देखिये साहब ! अमरचन्दजी स्वेच्छा से गिरफ्तार हुये हैं। यदि वे अपना स्थान असली अपराधी को देने की स्वीकारता दे दें तो अंग्रेज सरकार जयपुर पर पुन: अपना जाल बिछा सकती है। (किंचित् रोषपूर्वक) आप चाहें तो भेंट करने की अनुमति दें, वरना हम अभी जयपुर लौट जायेंगे। एजेन्ट - (साथियों से) टैल मी ओवर ओपीनियन अबाउट दिस मेटर? पहला साथी – इट इज बैटर टु गिव देम। दूसरा साथी – देन वी विल गैट दी सक्सेज इन अवर वर्क, अवर गवर्नमेन्ट विल गवर्न ऑन जयपुर स्टेट। ___ एजेन्ट - अवर फ्लेग विल ह्वाइस्ट ऑन जयपुर स्टेट। एन्ड अवर गवर्नमेन्ट विल गिव अस ए स्पेशल प्राइज एन्ड ऑनर । दोनों साथी – ओ यस ! यू आर क्वाइट राइट। एजेन्ट - अच्छा डीवान साहब ! अम टुमारा बाट की कडर करता हय । टुम उटनी दूर से आया और मुलाकात करना माँगटा हय टो अम टुमको हाफ घंटा बाट करने का डेगा। टुमारा काम अमरचन्द को राजी करने का झूथाराम - प्रयत्न करूँगा। (प्रस्थान) दृश्य षष्टम . स्थान - जेल की कोठरी। (कोठरी में बाहर से ताला लगा है। पहरेदार कंधे पर बन्दूक रखे पहरा दे रहा है। भीतर पालथी मारे अपनी अभ्यस्त ध्यान मुद्रा में आँखें मूंदे हुए अमरचंदजी बैठे हैं। वे सदा ही आत्मध्यान में तन्मय हो जाते हैं। दीवान झूथारामजी और फतेहलाल, चमनलाल के साथ आते हैं। इन्हें देखते ही पहरेदार ताला खोल देता है। तीनों व्यक्ति अन्दर प्रविष्ट होते हैं। सबके नयन

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