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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१८/६०
जय गोम्मटेश्वर
पात्रानुक्रमणिका दिगम्बर जैन साधु - आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती मैसूर के सेनापति - चामुण्डराय चामुण्डराय की माता - काललदेवी शिल्पी गण मूर्तिकार - रामास्वामी, कृष्णास्वामी, कन्नप्पा, एलप्पा सेवक
- दासप्पा भक्ति विह्वल बालक - सुन्दरम् अन्य
पुजारी तथा अन्य व्यक्ति
दृश्य प्रथम
स्थान : वन प्रान्तर (सघन वन के विस्तृत भूभाग में तंबू गड़े हैं। समीप ही एक शिला पर आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ध्यानस्थ हैं। चामुण्डराय वहीं प्रतिक्षारत हैं। चंद क्षणों के पश्चात् ॐ णमो सिद्धाणं का उच्चारण करते हुये आचार्य श्री ध्यान समाप्त करते हैं। चामुण्डराय नमस्कार कर समीप बैठ जाते हैं।)
नेमिचन्द्र – शुद्धात्म लाभ हो चामुण्डराय ! क्या बात है ? व्यग्र से दिखाई दे रहे हो।
चामुण्डराय - आपसे परामर्श चाहता हूँ गुरुदेव ! हम किस दिशा में चलकर आपके उद्देश्य की पूर्ति कर सकेंगे ?
एक माह की यात्रा के पश्चात् भी भगवान बाहुबली की प्रतिमा के कोई चिह्न दृष्टिगोचर नहीं हो रहे।
__ नेमिचन्द्र - चिंतित होने की आवश्यकता नहीं। अब हमें अपनी यात्रा स्थगित कर देना है।
चामुण्डराय - (जैसे भूल हो गई हो) नहीं, नहीं गुरुदेव ! मेरा प्रयोजन कदापि यह नहीं था।