Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 18
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 60
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १८/५८ ( डाक्टर का हाँफते हुये आना, दूसरी ओर से एजेन्ट आदि उपर्युक्त व्यक्ति आते हैं।) डाक्टर - ( एजेन्ट से) सर, आप उस कैदी को फाँसी नहीं दे सकते। कानून के खिलाफ है। एजेन्ट ( क्रोधावेश से) डेंमफूल, क्या बकवास करटा हय । काला आडमी ... डाक्टर ( बीच ही में ) मैं ठीक कह रहा हूँ सर, वह देखिये... (जमादार का अमरचन्दजी को लाते हैं ध्यानस्थ होने के साथ ही उनका आत्मा महाप्रयाण कर जाता है। पद्मासन लगाये उनका शव ऐसा प्रतीत होता है मानों समाधि में तल्लीन हो। जमादार इसी अवस्था में उठाकर लाते हैं । सब व्यक्ति घोर विस्मय से आँखें फाड़-फाड़कर देखते रह जाते हैं ।) आप मुर्दे को फाँसी पर नहीं चढ़ा सकते । - डाक्टर एजेन्ट - शट अप, क्या वकटा हय, ( डाक्टर को जोर से थप्पड़ मार देता है, डाक्टर अपने स्वाभिमान पर करारी चोट सहन कर दासता के समक्ष सिर झुका गाल सहलाता हुआ रह जाता है) जल्लाड, चढ़ाओ इसको फाँसी पर, ( जल्लाद आगे बढ़ता है पर उसके हाथ-पैर काँपने के कारण वह ठिठक जाता है) - फतेहलाल - (विषाद मिश्रित अत्यन्त प्रसन्नता से) समाधिमरण । झूथाराम - (आँसू पोंछते हुये) हाँ बेटा, समाधिमरण । चलो चलें । यह दुष्ट एजेन्ट शव के साथ दुर्व्यवहार करने से न चूकेगा। अब हम देख कर क्या करेंगे ? उस नीच को मन का गुवार निकाल लेने दो। (सजल नयन दोनों चल देते हैं ।) फतेहलाल – (मार्ग में) पिताजी की मृत्यु से जो दुःख हो रहा है, उससे कहीं अधिक आनंद की तरंगें भी उठती हैं। उनकी आकांक्षा पूर्ण हुई। चाण्डाल के अपवित्र हाथों के स्पर्श से पूर्व ही उनकी आत्मा स्वतः तन से पृथक् हो गई। (विह्वल हो) ताऊजी, उन्होंने अपनी भावनाओं को कितना

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