Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 18
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 59
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१८/५७ अमरचंदजी को फाँसी लगने की कल्पना से वे बार-बार सिहर उठते हैं। उनके आई नयन अश्रुओं से परिप्लावित हैं। कभी-कभी कपोलों पर अश्रुजल दुलक आता है मानो धैर्य ही किनारे तोड़कर बह रहा हो। दीवानजी के अन्तिम क्षणों की कल्पना मात्र से उनका हृदय अत्यन्त दुःखी हो रहा है।) ___ थोड़ी देर पश्चात् वहाँ जेलर, डाक्टर, सिपाही, जमादार, पोलीटिकल एजेन्ट व उसके अन्य साथी आते हैं। एजेन्ट - (गर्व के साथ) टुम लोग सोचटा होगा के फांसी में इटना डेर क्यों हो रहा हय ? उसका कारण हय- कैडी ने अपना आखिरी ख्वाहिश बटाया हय। वो एक घंटा ध्यान करना माँगता हय। अमारी रहमडिल कम्पनी सरकार उसका ख्वाहिश पूरा करेगा। कैडी को एक घंटे की जिंदगी और डे डिया हय। ये हय ‘जस्टिस विद काइन्डनेस। (यह सुनाकर सब चले जाते हैं।) (झूथारामजी व फतेहलाल एक-दूसरे की ओर आश्चर्य-चकित हो देखते हैं।) ___ फतेहलाल - क्या पिताजी मृत्यु से डर गये ? झूथाराम - (दृढता से) नहीं, ऐसा नहीं हो सकता असम्भव है। यह बेईमान कोरी शेखी बघार रहा है। ___ फतेहलाल - आप ठीक कह रहे हैं, उनके जीवन-चरित्र तथा विरक्ति को दृष्टिगत रखते हुये यह सम्भव प्रतीत नहीं होता ताऊजी। झूथाराम - और जब कि यह जानते हैं कि मौत अनिवार्य है, टलने वाली नहीं। यह अवश्य है कि समय कुछ अधिक हो गया है। __ फतेहलाल - हाँ, उसके कथनानुसार एक घंटा भी समाप्त हो रहा है। (हाथ जोड़कर) हे भगवन्, अब लाज तुम्हारे हाथ है। निवाह देना। (दोनों कपोलों पर दो बूंदें दुलक आती हैं।) झूथाराम - बेटा, जिस संयम ने तुम्हारे पिताजी को सदा सन्मार्ग पर चलाया है, वही अब भी सहयोगी रहेगा। सरल स्वभावी दयालु की मृत्यु अमरता का संदेश दे जाती है।

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