Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 18
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 40
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१८/३८ समय रास्ते में हत्या करवा दी। इस हत्या का कोई राजनीतिक कारण अथवा साजिश नहीं थी। जयपुर भर को ज्ञात है कि उस रात कप्तान स्मिथ मेरे घर आये थे। मैंने उन्हें छलपूर्वक बगैर किसी साथी के अकेले ही रवाना किया। अब आपकी बारी है मुझे झूठा सिद्ध करने की एजेन्ट साहब ! झूथाराम – (आवेश में खड़े होकर) नहीं-नहीं न......। जगतसिंह – नहीं, नहीं ये क्या कह रहे हैं दीवान जी ! आप होश में तो हैं ? एजेन्ट – (हक्का-बक्का सा आँखें फाड़कर देखता है फिर मानों होश में आकर) नेई नेई ऐसा नेई होने सकटा। तुम आदमी हय । टुम जैनी लोग चींटी को नेई मारटा, वाटर का वैक्टीरिया टक नेई मारटा । अम टुमको पहले से पर्सनली जानटा हय। तुम एक डोस्ट ऑफीसर को कैसे मार सकटा हय। अमरचन्द - आपकी यह एकतरफा बात नहीं मानी जावेगी एजेन्ट साहब ! (किञ्चित मुस्कुराकर) जयपुर की सरकार भी प्रीबी कौंसिल तक पहुँच सकती है। वहाँ ब्रिटिश कानून आपके वचनों पर जरा भी विश्वास नहीं करेगा। मैं कप्तान स्मिथ का खूनी हूँ और अन्त समय तक अपने वचनों पर दृढ़ रहूँगा। (अपनी पगड़ी उतार कर राजा जगतसिंह की गोद में रखकर) मैं इसी क्षण महान् जयपुर राज्य के दीवानी पद की इस सम्मान्य पगड़ी को राजा साहब को सादर सौंपकर अपने पद से मुक्त होता हूँ; ताकि इस पर कोई दयालु परोपकारी, विश्वासपात्र परिश्रमी सज्जन आसीन होकर राजा-प्रजा की उचित सेवा कर सके। राजा जगतसिंह वझूथारामजी दीवान अमरचन्दजी के त्याग पर अत्यन्त विमोहित हो जाते हैं। गले भर आने के कारण मुँह से बोल नहीं फूटते । वे एकटक पगड़ी की ओर देखते रह जाते हैं। एजेन्ट : (क्रोधपूर्वक) डीवान अमरचन्द टुम जानता हय इसकी सजा क्या होगी?

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