Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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निःशांकित अंग में प्रसिद्ध अंजन चोर की कहानी
तत्त्व यही है ऐसा ही है, नहीं और नहीं और प्रकार। जिनकी सन्मारग में रुचि हो, ऐसी मानो खड्ग की धार॥
है सम्यक्त्व अंग यह पहला, 'निःशांकित' है इसका नाम। , इसके धारण करने से ही, 'अंजन चोर' हुआ सुख घाम।।
अंजन चोर, वह कोई मूल में चोर नहीं था, वह तो उसी भव में मोक्ष पाने वाला एक राजकुमार था । उसका नाम था ललित कुमार। , अभी तो वे निरंजन-भगवान हैं, लेकिन लोक में उन्हें अंजन चोर के
नाम से पहचानते हैं । आइये, आगे पढ़ते हैं, उनकी कहानी। . उस राजकुमार ललित को राजा ने दुराचारी जानकर राज्य से बाहर निकल दिया । उसने एक ऐसे अंजन (काजल) को सिद्ध कर लिया, जिसके लगाने से वह अदृश्य हो जाता था । वह काजल उसे चोरी करने में सहायक बना था, इसलिए वह अंजन चोर नाम से प्रसिद्ध हो गया । चोरी करने के उपरान्त वह जुआ और वेश्या सेवन जैसे महापाप भी करने लगा। ___ एक बार उसकी प्रेमिका ने रानी के गले में सुन्दर रत्न-हार देखा और उसे पहनने की उसके मन में तीव्र इच्छा हुई । जब अंजन चोर उसके पास आया तो उसने उससे कहा- "हे अंजन! अगर तुम्हारा मुझ पर सच्चा प्रेम है तो रानी के गले का स्लहर मुझे लाकर दो।"