Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/७८ जिसे दुर्गति में जाना होता है, वही पुरुष जान-बूझकर ऐसा झूठ बोलता है । .. - तब दोनों में सच्चा कौन है, इसका निर्णय करने के लिए उन्होंने राजा वसु को मध्यस्थ चुना । तथा परस्पर में प्रतिज्ञा की कि जिसका कहना झूठ सिद्ध होगा, उसकी जबान काट दी जायेगी । पर्वत की माँ को इस विवाद पर परस्पर प्रतिज्ञा की बात मालूम हुई । वह जानती थी की पर्वत ने उस श्रुति का उलटा अर्थ करके असत्य वचन कहा है और वसु राजा का निर्णय होने के पश्चात् पर्वत की जबान काट दी जायेगी।
पुत्र का पक्ष असत्य होने पर भी पुत्र-प्रेम से वह अपने कर्तव्य से विचलित हुई । वह राजा वसु के पास पहुंची और उससे बोली"पुत्र, तुम्हें याद होगा कि मेरा एक वर तुमसे पाना बाकी है । आज उसकी मुझे जरूरत आ पड़ी है । इसलिए अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह कर मुझे कृतार्थ करो । उसके निर्णय के लिए उन्होंने तुम्हें मध्यस्थ चुना है । इसलिए मैं तुम्हें कहने को आई हूँ कि तुम पर्वत के पक्ष का समर्थन करना ।”
जो स्वयं पापी होते हैं, वे दूसरों को भी पापी बना डालते हैं । जैसे सर्प स्वयं जहरीला होता है और जिसे काटता है, उसे भी विषयुक्त कर देता है। पापियों का यह स्वभाव ही होता है।
__राजसभा लगी हुई थी । बड़े-बड़े कर्मचारी यथास्थान बैठे थे। राजा वसु भी एक अत्यन्त सुन्दर रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठा हुआ था । इतने में पर्वत और नारद अपना न्याय कराने के लिए राजसभा में आये । दोनों ने अपना-अपना कथन सुना कर अन्त में किसका सत्य है और गुरुजी ने हमें अजैर्यष्टव्यम्' इसका क्या अर्थ समझाया था, इसका निर्णय करने का भार वसु पर छोड़ दिया ।
वसु उक्त शब्द का अर्थ जानता था और यदि वह चाहता तो