Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/९२ राजसेवक सेठ को मृत्यु दण्ड के स्थान पर ले गये बस, उन्हें मृत्यु दण्ड दिया ही जा रहा था कि शील के प्रताप से दैवी चमत्कार हुआ...आकाश से फूल बरसने लगे...पृथ्वी फटी...दैवी सिंहासन प्रगट हुआ....तलवार चलाने वाले के हाथ हवा में लटक गये...। ..
अरे, यह क्या ? मृत्यु अमृत का द्वार बन गई । आकाश में देवगण सेठ सुदर्शन के शील की जय-जयकार करने लगे।
राजा ने सेठ से क्षमा माँगी और सम्मान पूर्वक नगर में आने . की प्रार्थना की, परन्तु संसार से विरक्त सुदर्शन तो दीक्षा लेकर मुनि बन गये । मुनि होने के बाद भी उनके शील की अनेक बार कसौटी हुई, परन्तु वे अडिग रहे, उपद्रव होने पर भी आत्मा की साधना से नहीं डिगे।
___ अन्त में सुदर्शन मुनि सम्पूर्ण अतीन्द्रिय भाव प्रगट करके केवलज्ञान पाकर मोक्ष गये । पटना शहर में (गुलजारबाग स्टेशन के सामने) उनका सिद्धिधाम आज भी जग में प्रसिद्ध है ।