Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/७६ - एक दिन क्षीरकदम्ब के मन में प्रकृति की शोभा देखने की उत्कण्ठा हुई । वह अपने साथ तीनों शिष्यों को भी इसलिए साथ ले गया कि उन्हें वहीं पाठ भी पढ़ा दूंगा । वे एक सुन्दर बगीचे में पहुंचे। वहाँ कोई अच्छा पवित्र स्थान देख कर वह अपने शिष्यों को पढ़ाने लगा । उसी बगीचे में दो ऋद्धिधारी महामुनि आपस में धर्म की चर्चा कर रहे थे । उनमें से छोटे मुनि ने क्षीरकदम्ब को पाठ पढ़ाते देख कर बड़े मुनिराज से कहा- “प्रभो ! देखिये, कैसे पवित्र स्थान में गुरु अपने शिष्यों को पढ़ा रहा है ।" .
___गुरु ने कहा – “अच्छा है , पर देखो, इनमें से दो पुण्यात्मा हैं, वे तो स्वर्ग जायेंगे और दो पाप के उदय से नरक के दुःख भोगेंगे।"
मुनि के वचन क्षीरकदम्ब ने सुन लिए । वह अपने शिष्यों को घर भेज कर मुनिराज के पास गया । उन्हें नमस्कार कर उसने पूछा"हे भगवन् ! कृपा करके मुझे बताइये कि हम में से कौन दो स्वर्ग जायेंगे और कौन दो नरक जायेंगे ?"
____ मुनिराज ने क्षीरकदम्ब से कहा- “हे भव्य ! स्वर्ग जाने वालों में एक तो तुम स्वयं हो और दूसरा धर्मात्मा नारद है तथा वसु और पर्वत पाप परिणामों के फल स्वरूप पाप के उदय से नरक जायेंगे।"
क्षीरकदम्ब मुनिराज को नमस्कार कर अपने घर आया । उसे इस बात का बड़ा दुःख हुआ कि उसका पुत्र नरक में जायेगा, क्योंकि मुनियों के वचन कदापि मिथ्या नहीं होते ।
कुछ दिन पश्चात्, कोई ऐसा कारण दीख पड़ा, जिससे वसु के पिता विश्वावसु अपना राज-काज वसु को सौंप कर नग्न दिगम्बर साधु हो गये । राज्य कार्य अब वसु करने लगा । उसके न्याय-सिंहासन को स्फटिक.मणि के पाये लगे हुए थे, जिससे ऐसा जान पड़ता था, मानो वह सिंहासन आकाश में ठहरा हुआ हो । उसी पर बैठ कर वह राज्य-शासन चलाता था ।