Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 48
________________ जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/४६ खण्डन करके उन्हें चुप कर दिया । दूसरों के मौन की खिल्ली उड़ाने वाले खुद मौन की साधना करने लगे । इस प्रकार राजा की उपस्थिति में हार जाने से मन्त्रियों को अपना अपमान लगा । अपमान से क्रोधित होकर वे पापी मन्त्री रात्रि में मुनिराज को मारने के लिए गये । ' और उन्होंने ध्यान में खड़े मुनिराज के ऊपर तलवार उठा कर जैसे ही उन्हें मारने का प्रयत्न किया, वैसे ही अकस्मात् उनका हाथ'. खड़ा ही रह गया । कुदरत ऐसी हिंसा देख नहीं सकी। तलवार उठाये हुए हाथ वैसे के वैसे ही कीलित हो गये और उनके पैर भी जमीन के साथ ही चिपक गये । सुबह होने पर लोगों ने यह दृश्य देखा और राजा को चारों ही मन्त्रियों की दुष्टता की खबर मिली । तब राजा ने उनको गधे पर बैठा कर नगर के बाहर निकाल दिया । युद्ध कला में कुशल ऐसे वे बलि आदि मन्त्री भटकते-भटकते हस्तिनापुर नगरी पहुँचे और वहाँ राज दरबार में मन्त्री बन कर रहने लगे ।

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