Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 08
Author(s): Haribhai Songadh, Vasantrav Savarkar Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 69
________________ जैन धर्म की कहानियाँ भाग-८/६७ डंक लगा हुआ अनाज तथा सड़ा हुआ फल उपयोग में नहीं लेना चाहिए । शत्रु या पशु या बालक आदि को हाथ या लकड़ी आदि से मारना नहीं चाहिए, क्योंकि यह तो क्रूरता का काम है। मुख से भी मैं तुम्हें मार दूंगा' इत्यादि हिंसा के वचन बोलना नहीं चाहिए । अपनी सभी प्रवृत्ति जीव-रक्षा के लिए प्रयत्न पूर्वक सावधानी से करनी चाहिए, जिससे अपने परिणाम में कषायं की उत्पत्ति ही नहीं हो और व्रत के योग्य शुद्ध अकषाय परिणाम बना रहे । अरे जीव ! तुझे एक तृण के कठोर स्पर्श से भी दुःख होता है तो दूसरे जीवों पर तू शस्त्र किस प्रकार चलाता है ? तू कैसा निर्दयी है? अरे निर्दयी ! हिंसा की तो जगत के सभी विद्वानों ने निन्दा की है, क्योंकि वह नरक का कारण है और दुःख देने वाली है । ऐसी पापमयी हिंसा को छोड़ और जीवों के ऊपर दया कर ..... अकषाय भाव धारण कर ।" - "हे प्रभो ! पुराणों में अहिंसा व्रत के पालने में कौन प्रसिद्ध है ? और उसका कैसे उत्तम फल मिलता है ? उसकी कहानी बताइये।" . "हे वत्स ! सुन अहिंसा व्रत के पालने में यमपाल चाण्डाल की कहानी प्रसिद्ध हैयमपाल चाण्डाल की कहानी: पोदनपुर में महाबल नामक राजा और उसका बल नामक पुत्र रहता था। राजकुमार बल दुष्ट-पापी था और माँस-भक्षण करता था । उस राज्य में यमपाल चाण्डाल गुनहगारों को फांसी देने का काम करता था । __ वहाँ, एक बार अष्टाह्निका महापर्व के पवित्र दिनों में राजा ने आज्ञा की-“अष्टाह्निका महापर्व के ये आठ दिन महा मंगल हैं, उनमें

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